ज्योतिष ज्योति और ईश दो शब्दों से मिलकर बना है। जब व्यक्ति ने सर्वप्रथम आकाश में स्थित चांद तारों की स्थिति को देखा तो बहुत ही आश्चर्यचकित हुआ और उसने चांद तारों को ईश्वरीय प्रकाश के रूप में मानकर ज्योतिष के रूप में स्वीकार किया। ज्योतिष का इतिहास बहुत पुराना है वेदों से भी पुराना क्योंकि वेदों में जो ग्रह तारों नक्षत्रों का स्वरूप मिलता है वह अत्यंत विकसित रूप है जो ये सिद्ध करता है । ज्योतिष आज तक सामायिक परिवर्तनों के साथ अनवरत रूप से चलता आ रहा है । जो ग्रह नक्षत्रों के नाम वेदों में मिलते हैं उन्हीं का उपयोग आज तक वैदिक से आधुनिक काल तक चलता आ रहा है। वेदों के पश्चात ज्योतिष को वेदों के अंग के रूप में स्वीकार किया गया तत्पश्चात जितने भी शास्त्र हुए ज्योतिष विषय का विवेचन मिलता रहा
ज्योतिष का वर्णन तीन रूपों में मिलता है – काल गणना के रूप में, ग्रह नक्षत्रों के मानवीय जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव के रूप में और देश- देशांतरीय परिस्थितियों को जानने के रूप में , इन्हें क्रमश: गणित होरा व संहिता ज्योतिष कहा गया। संपूर्ण संसार में जितनी भी घटनाएं ग्रह नक्षत्रों से संबंधित है वह सभी वेदों के आधार पर मानी जाती हैं उन सब का आधार वैदिककालीन गणना ही है। इसका एक उदाहरण यू कह सकते हैं कि अंग्रेजी के 1 से लेकर 9 तक का उच्चारण वैदिक संस्कृत से ही प्रेरित है जैसे अष्ट एट , नवम नाइन। इसके अतिरिक्त जितना भी खगोल शास्त्रीय अध्ययन हुआ है उसका आधार भी भारतीय ज्योतिष ही है। यदि देखा जाए जितना ज्योतिष का विकसित रूप वैदिक काल में हमें मिलता है उतना अब तक नहीं हुआ बल्कि ज्योतिष विषय अब एक अजीब सी स्थिति में स्थिति में आ गया है
आज अध्ययन की कमी हो गई है, हम शॉर्टकट अपनाने लगे हैं। गणनाओं का कंप्यूटरीकरण हो गया है इसलिए अभ्यास न होने से सब जैसे लुप्त सा होने लगा है फिर भी यदि हम इन साधनों का उपयोग सही दिशा में करें तो हम कंप्यूटर गणना से लाभान्वित हो सकते हैं परंतु इस तरह का वातावरण हम भारतीय ज्योतिषियों का नहीं है। हमारा शोध इस विषय पर ना के बराबर है एक बार मैं कोलकाता सेमिनार में गई थी जहां पाश्चात्य ज्योतिषी भी आए थे उनके शोध पूर्ण पत्र बड़े हैरान करने वाले थे। उनका अध्ययन बहुत तर्कपूर्ण व तथ्यों पर आधारित था। आज हमें इस तरह के अध्ययन की आवश्यकता है परंतु हमारा सारा ध्यान फलित पर तो रहता है लेकिन तथ्यों पर नहीं।
ज्योतिष एक देवीय विद्या है जो अति प्राचीन है और अध्यात्म की ओर ले जाती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह सूक्ष्म से स्थूल व स्थूल से सूक्ष्म दोनों मार्गो से यात्रा का विषय है। इसमें पिंड से ब्रह्मांड व ब्रह्मांड से पिंड दोनों का तादात्म्य है दोनों के प्रभाव से ही ज्योतिष को सिद्ध किया जा सकता है अन्यथा नहीं क्योंकि शरीर पर ग्रह का प्रभाव पड़ता है तो फलित का महत्व तो है ही परंतु तथ्य पर हो इसके लिए हमें इस विषय पर बहुत काम की आवश्यकता है । हम प्रयत्न करेंगे कि इस विषय को गहराई से समझें।